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सोमवार, 24 नवंबर 2008

मनुष्य भी जब अपने


  • संसार की प्रत्येक वस्तु का अपना ऐक धर्म होता हे ! पानी का भी ऐक धर्म हे - शीतलता देना , तृप्ति देना , गीला करना ! अगर पानी अपने गुंण को छोड दे तो फिर पानी का अस्तित्व नहीं बचता ! मनुष्य भी जब अपने धर्म में स्थिर रहता हे , मानविय गुणों से युक्त रहता हे तभी वह मनुष्य कहलाता हे ! यदि मनुष्य मानविय गुणों को छोड देता हे तो फिर वह मनुष्य नहीं पशु हे , तब वह दानव कहलाता हे ! शास्त्र में कहा गया हे कि अपनी आत्मा के विपरीत व्यवहार किसी के साथ न करें ! जो व्यवहार अपने प्रति आपको पसन्द हे ,वही व्यवहार दूसरों के साथ करो, इसी का नाम धर्म हे !
  • धर्मदूत नवम्बर २००८ से