हम बच्चे को जब चलना सिखाते हैं तो चलने के लिये बच्चे के अभ्यास प्रारम्भ करने पर वह गिर भी सकता है, फिसल भी सकता है। कई बार गिरता है तभी तो चलना सीखता है। इसी प्रकार आप जब आध्यात्मिक जगत में , साधना में , भक्ति के मार्ग में चलना चाह्ते हैं, कितनी बार आपका भी पाँव फिसलेगा , नियम टूटेगा, लापरवाही होगी। आप पुनः इस तरह से सकल्प करना जैसे कि बच्चा चलना सीखता है तो गिरने पर उतनी ही हिम्मत से उठता है। उसका ध्यान गिरने पर नहीं होता, उसका ध्यान सम्हलने पर होता है। आपका ध्यान सम्हलने पर होना चाहिये। गिर गये, इसी बात को पकड़कर मत बैठे रहिये। सकल्प करो और पुनः आगे बढो ।
परम पूज्य सुधाँशुजी महाराज
When a child first learns how to walk, he may slip or fall. The child will slip or fall many times before he learns how to perfect walking. Upon falling the child will get up, pulls himself together and courageously takes another step forward. Similarly, as you embarks on you spiritual journey, you may slip many times; rules will be broken and carelessness will occur. Just as the child recovers from a fall by taking a step forward, you too should resolve to move forward after a slip and continue on your spiritual path.
Translated by Humble Devotee
praveen Verma
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