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गुरुवार, 6 जनवरी 2011

जीवन में पुरुषार्थ को महत्व दें या प्रारब्ध को

----- Original Message -----
Sent: Thursday, January 06, 2011 10:51 AM
Subject: [jigyasa aur samadhan] जीवन में पुरुषार्थ को महत्व दें या प्रारब्ध को



जिज्ञासु : गुरुदेव ! जीवन में पुरुषार्थ को महत्व दें या प्रारब्ध को ,अथवा इन दौनो से बढ़कर भी कुछ और हे ?

गरिमा कुमारी ,, गुडगाव (हरियाणा )

पूज्य गुरुदेव :-मनुष्य को यह समझ लेना चाहिए कि पुरुषार्थ और प्रारब्ध से ऊपर एक और चीज हे जिसका नाम प्रार्थना हे ! भाग्य जो दे उसमें सन्तुष्ट रहना ! पुरुषार्थ तो आपको करना हे ! उसमें कभी सन्तोष नहीं करना ! पुरुषार्थ अधिक नहीं किया जा सकता , लेकिन प्रार्थना तो जितनी हो जाये उतनी कम हे ! भजन जितना भी किया जा सके उतना अच्छा ,लेकिन भजन में बाधक हे अविश्वास ,अनिश्चय और कुतर्की परम्पर! इसमें गहरी श्रद्धा ही शक्ति हे ! कुतर्क करना,आलोचना को स्थान देना ,निन्दा में मन को लगाना-ये शक्तियां एसी हें ,जो आपकी प्रार्थना को आपकी भक्ति के रस को छन ले जाती हें ! उनसे बचें और प्रार्थना को महत्व दें ! प्रार्थना से जब परमात्मा की कृपा होने लगती हे तो व्यक्ति वह प्राप्त करता हे जो भाग्य और पुरुषार्थ दौनों से ऊपर हे !


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Posted By Madan Gopal Garga to jigyasa aur samadhan at 1/06/2011 10:47:00 AM