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सोमवार, 7 मार्च 2016

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---------- Forwarded message ----------
From: Madan Gopal Garga <mggarga2013@gmail.com>
Date: 2016-03-07 10:02 GMT+05:30
Subject:
To: Madan Gopal Garga <mggarga@gmail.com>


' ॐ नम: शिवाय:!
गुरुदेव के प्रवचन से….
भगवान शंकर देव नही महादेव कहलाए!
भगवान शंकर का एक रूप ओर भी है,जब उन्हें महादेव कहा गया। समुन्द्र मंथन के अवसर पर 14 रतन निकले जिनमें विष भी निकला, अमृत भी निकला।अमृत लेने के लिए सब आगे आ गए।सुर-असुर,देवी-देवता भी आगे आ गए।पर विष लेने के लिए कोई भी आगे नही आया। लेकिन भगवान शंकर ने सब के हिस्से की कड़वाहट को अपनाया। जिन्होने अमृत पिया,वो सब के सब देव कहलाए,लेकिन भगवान शंकर ने विष पिया वे देव नही महादेव कहलाए। घर परिवार की एकता व संघटन को बनाए रखने के लिए अगर अपमान का कड़वा घूंट पीना भी पड़ जाए, उस से आप छोटे नही हो जाएंगें,इससे आप का स्थान बड़ा होगा।भगवान शंकर ने विष पिया लेकिन गले के नीचे नही जाने दिया। भगवान शंकर यह समझाना चाहते हैं कि दुनियाँ की कड़वाहट को पीना, कड़वी बाते सुन लेना,दुनियाँ के अपशब्द भी सुन लेना पर गले तक ही रखना,नीचे नही जाने देना।दुनियाँ की बातें ऐंसी नहीं कि जिन्हें दिल से लगाया जाए ओर अगर दिल से लगा बैठोगे तो जीना मुशकिल हो जाएगा। संसार की बातो को गले तक ही रखना।भगवान शंकर सबके कल्याण की कामना करते हैं, सब को समृद्धि देते हैं,लेकिन स्वयं त्याग से युक्त है, इसलिए बस्ती से अलग बाहर जाकर रहते हैं।जितने-2 ऊचें चले जाओगे त्याग को अपनाते जाना,अनासक्त भाव से संसार में रहना,तभी यह शव शिव हो सकता है।इसलिए उस मंगल प्रभु को सुबह-शाम याद करते हुए श्रद्धा भाव से उनका नाम हर रोज़ उच्चारण करा कीजिए।दिन की शुरूआत उसके नाम से हो संपन्न उसी के नाम से हो यही आदत स्वभाव बन जाये।महाशिवरात्रि की शुभकामनाएँ!सादर हरि ॐ जी!जय गुरुदेव!